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What’s with this “Wren” thing?
The oldest extant version of the fable
we
are presenting here appeared in 1913 in the first volume of a two-volume anthology
of Low
Saxon folktales (Plattdeutsche
Volksmärchen “Low German Folktales”)
collected by Wilhelm Wisser (1843–1935). Read
more ...
किसी ज़माने में एक फुदकी थी, जिस ने एक गौराज में अपना घोंसला बनाया था । एक दिन
वह अपनी बीवी के साथ निकलकर अपने चूज़ों के लिए खाना तलाश करने गया था, उनही चूज़ों
को अकेले छोड़के ।
थोड़ी देर के बाद फुदकीयों का बाप वापस आया ।
“यहां कया होता रहा हई ?” उसने पूछछा । “कया हूआ ? तुम बच्चों बहुत ज़ियादा
डरे हूए लगते हो ।”
“अब्बा !” उनहोंने कहा, “ यहां से एक दैतय गुज़रके गया हई । वह इतना अपरियकार
लग रहा था, और अपनी बड़ी बड़ी आंखों से हमारा घोंसले में घूरके देखता रहा, ज़िस वज़ा
से हम बिलकुल डर गए थे !”
“अछछा, मैं समझ गया,“ उसने कहा, “उसके बाद वह किधर गया हई ?”
“उस तरफ़ गया हई ।” उनहोंने जवाब दिया, जंगल की तरफ़ इशारा करके ।
“बच्चो ! यहीं परतीकषा करो !” फुदकीयों का बापने कहा, “मैं उसको एक पाथ सिखादूंगा,
जिसको वह कभी नहीं भूलेगा ! बच्चो, फ़िकर मत करो, मैं उसको पकड़ूंगा !” यह केहकर
वह दैतयके पीछछे लग गया ।
अचानक एक कौने से मुड़के उसने एक शेर को चलते हूए देखा, मगर फुदकी का बाप
किसी सूरत में डरने वाला ना था । शेर की पीठ के ऊपर उतरके , वह उसको चिल्लाने
लगा : “तुम अपने आपको कया समझने लगे हो के तुम मेरा घौंसले पे आके मेरे बच्चों
को तंग करते हो ?”
पहाड़ी शेर ने फुदकी का बाप को बिलकुल नज़र अनदाज़ किया, और आगे चलता रहा ।
इस रवाये से फुदकी का बाप को और गुस्सा लग गया, उंची आवाज़ से वह शेर को समझाने
लगा : “ख़बरदार ! तुमहें दोबारा मेरे घौंसले पे आने की ज़रूरत नहीं हई, अगर सनयोग
से आ भी गए तो तुमहें बहुत अफ़सोस होगा ! मैं सच मुच में अपनी ताक़त नहीं देखाना
चाहता हुं ...,” यह केहकर उसने एक टांग उठाई,“ मगर एक पलक में मैं तुमहरी पीठ
को तोड़ डालूंगा !”
उसके बाद वह अपने घौंसले पे वापस चला गया ।
“अब बच्चो तुमहें किसी क़िसम की फ़िकर करने की ज़रूरत नहीं ।” उसने कहा, “मैं
उसको एक ज़बरदसत पाठ सिखा चुका हूं । वह कभी वापस नहीं आएगा !”